Artwork

Conteúdo fornecido por Vijay Oraon. Todo o conteúdo do podcast, incluindo episódios, gráficos e descrições de podcast, é carregado e fornecido diretamente por Vijay Oraon ou por seu parceiro de plataforma de podcast. Se você acredita que alguém está usando seu trabalho protegido por direitos autorais sem sua permissão, siga o processo descrito aqui https://pt.player.fm/legal.
Player FM - Aplicativo de podcast
Fique off-line com o app Player FM !

Tribal Mythology: Story behind Sohrai Festival & painting

3:28
 
Compartilhar
 

Manage episode 447791785 series 3128818
Conteúdo fornecido por Vijay Oraon. Todo o conteúdo do podcast, incluindo episódios, gráficos e descrições de podcast, é carregado e fornecido diretamente por Vijay Oraon ou por seu parceiro de plataforma de podcast. Se você acredita que alguém está usando seu trabalho protegido por direitos autorais sem sua permissão, siga o processo descrito aqui https://pt.player.fm/legal.
सोहराई त्योहार मुख्य रूप से झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में रहने वाली आदिवासी जनजातियों, विशेषकर संथाल, हो, मुंडा और उरांव समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार फसल कटाई के बाद नवजात अनाज की उपज और समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसके साथ ही सोहराई के दौरान प्रकृति, पशुधन और स्थानीय देवताओं की पूजा की जाती है। इस त्योहार की कई पौराणिक कथाएं हैं, जो इसके महत्व को और गहराई से समझाती हैं। सोहराई की पौराणिक कथा एक प्रमुख कथा के अनुसार, सोहराई की शुरुआत देवी-देवताओं की कृपा से हुई थी। प्राचीन समय में जब आदिवासी लोग कृषि और पशुपालन में लगे थे, तो उनकी फसल और पशुओं की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती थी। वे मानते थे कि फसल की समृद्धि और पशुधन की वृद्धि में देवी-देवताओं का आशीर्वाद जरूरी है। कहते हैं कि एक बार देवी धरती माँ ने अपने भक्तों को एक सपना दिया, जिसमें उन्होंने उन्हें बताया कि हर वर्ष फसल कटाई के बाद पशुओं, विशेषकर गाय और बैल, का आदर करना चाहिए, क्योंकि वे खेत जोतने और फसल उगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके साथ ही उन्होंने पशुओं को स्नान करवा कर उनकी पूजा करने और दीवारों पर सुंदर चित्र बनाने का निर्देश दिया। इस तरह, यह परंपरा आदिवासी समुदायों में फैल गई और सोहराई का त्योहार मनाने की शुरुआत हुई। सोहराई के अनुष्ठान और दीवार चित्रकला सोहराई में घर की दीवारों पर सुंदर चित्र बनाए जाते हैं, जिन्हें "सोहराई कला" कहा जाता है। माना जाता है कि ये चित्र देवी-देवताओं को समर्पित होते हैं और इन्हें देख कर देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। सोहराई चित्रकला में प्रमुख रूप से जानवरों, पेड़ों, और अन्य प्राकृतिक तत्वों को दर्शाया जाता है, जो आदिवासी समुदाय की प्रकृति के प्रति श्रद्धा को प्रदर्शित करता है। कथा के अनुसार, जब धरती माँ ने सोहराई की शुरुआत की थी, तब उन्होंने खुद जानवरों और पेड़-पौधों के चित्रों को बनाने की विधि सिखाई थी, जिससे कि हर घर में समृद्धि आए और हर व्यक्ति अपने जीवन में खुशहाल रहे। पशुधन और कृषि का सम्मान इस त्योहार में कृषि और पशुधन का विशेष महत्व होता है। सोहराई की एक अन्य कथा में बताया जाता है कि जब एक समय पूरे गाँव की फसल बर्बाद हो गई थी, तब धरती माँ ने अपने भक्तों को सपना देकर कहा था कि अगर वे पशुओं का सम्मान करेंगे, उन्हें स्नान करवा कर सजाएँगे और दीवारों पर शुभ प्रतीक बनाएँगे, तो उनकी फसल फिर से समृद्ध हो जाएगी। इसके बाद से ही पशुओं को सम्मान देने की परंपरा शुरू हुई। गाँववाले इस त्योहार में पशुओं को स्नान कराते हैं, उन्हें हल्दी और सिंदूर लगाते हैं और उनका पूजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस पूजा से धरती माँ और पशुधन देवता प्रसन्न होते हैं और गाँव में समृद्धि लाते हैं। सोहराई त्योहार आदिवासी जनजातियों के लिए सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का हिस्सा है। यह त्योहार प्रकृति, पशुधन और फसल की पूजा का प्रतीक है और उन्हें संरक्षित करने की प्रेरणा देता है। सोहराई की पौराणिक कथाएं हमें बताती हैं कि किस तरह आदिवासी समाज में देवी-देवताओं और प्रकृति का आदर किया जाता है और हर जीव को सम्मान देने का संदेश दिया जाता है।
  continue reading

43 episódios

Artwork
iconCompartilhar
 
Manage episode 447791785 series 3128818
Conteúdo fornecido por Vijay Oraon. Todo o conteúdo do podcast, incluindo episódios, gráficos e descrições de podcast, é carregado e fornecido diretamente por Vijay Oraon ou por seu parceiro de plataforma de podcast. Se você acredita que alguém está usando seu trabalho protegido por direitos autorais sem sua permissão, siga o processo descrito aqui https://pt.player.fm/legal.
सोहराई त्योहार मुख्य रूप से झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में रहने वाली आदिवासी जनजातियों, विशेषकर संथाल, हो, मुंडा और उरांव समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार फसल कटाई के बाद नवजात अनाज की उपज और समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसके साथ ही सोहराई के दौरान प्रकृति, पशुधन और स्थानीय देवताओं की पूजा की जाती है। इस त्योहार की कई पौराणिक कथाएं हैं, जो इसके महत्व को और गहराई से समझाती हैं। सोहराई की पौराणिक कथा एक प्रमुख कथा के अनुसार, सोहराई की शुरुआत देवी-देवताओं की कृपा से हुई थी। प्राचीन समय में जब आदिवासी लोग कृषि और पशुपालन में लगे थे, तो उनकी फसल और पशुओं की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती थी। वे मानते थे कि फसल की समृद्धि और पशुधन की वृद्धि में देवी-देवताओं का आशीर्वाद जरूरी है। कहते हैं कि एक बार देवी धरती माँ ने अपने भक्तों को एक सपना दिया, जिसमें उन्होंने उन्हें बताया कि हर वर्ष फसल कटाई के बाद पशुओं, विशेषकर गाय और बैल, का आदर करना चाहिए, क्योंकि वे खेत जोतने और फसल उगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके साथ ही उन्होंने पशुओं को स्नान करवा कर उनकी पूजा करने और दीवारों पर सुंदर चित्र बनाने का निर्देश दिया। इस तरह, यह परंपरा आदिवासी समुदायों में फैल गई और सोहराई का त्योहार मनाने की शुरुआत हुई। सोहराई के अनुष्ठान और दीवार चित्रकला सोहराई में घर की दीवारों पर सुंदर चित्र बनाए जाते हैं, जिन्हें "सोहराई कला" कहा जाता है। माना जाता है कि ये चित्र देवी-देवताओं को समर्पित होते हैं और इन्हें देख कर देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। सोहराई चित्रकला में प्रमुख रूप से जानवरों, पेड़ों, और अन्य प्राकृतिक तत्वों को दर्शाया जाता है, जो आदिवासी समुदाय की प्रकृति के प्रति श्रद्धा को प्रदर्शित करता है। कथा के अनुसार, जब धरती माँ ने सोहराई की शुरुआत की थी, तब उन्होंने खुद जानवरों और पेड़-पौधों के चित्रों को बनाने की विधि सिखाई थी, जिससे कि हर घर में समृद्धि आए और हर व्यक्ति अपने जीवन में खुशहाल रहे। पशुधन और कृषि का सम्मान इस त्योहार में कृषि और पशुधन का विशेष महत्व होता है। सोहराई की एक अन्य कथा में बताया जाता है कि जब एक समय पूरे गाँव की फसल बर्बाद हो गई थी, तब धरती माँ ने अपने भक्तों को सपना देकर कहा था कि अगर वे पशुओं का सम्मान करेंगे, उन्हें स्नान करवा कर सजाएँगे और दीवारों पर शुभ प्रतीक बनाएँगे, तो उनकी फसल फिर से समृद्ध हो जाएगी। इसके बाद से ही पशुओं को सम्मान देने की परंपरा शुरू हुई। गाँववाले इस त्योहार में पशुओं को स्नान कराते हैं, उन्हें हल्दी और सिंदूर लगाते हैं और उनका पूजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस पूजा से धरती माँ और पशुधन देवता प्रसन्न होते हैं और गाँव में समृद्धि लाते हैं। सोहराई त्योहार आदिवासी जनजातियों के लिए सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का हिस्सा है। यह त्योहार प्रकृति, पशुधन और फसल की पूजा का प्रतीक है और उन्हें संरक्षित करने की प्रेरणा देता है। सोहराई की पौराणिक कथाएं हमें बताती हैं कि किस तरह आदिवासी समाज में देवी-देवताओं और प्रकृति का आदर किया जाता है और हर जीव को सम्मान देने का संदेश दिया जाता है।
  continue reading

43 episódios

Todos os episódios

×
 
Loading …

Bem vindo ao Player FM!

O Player FM procura na web por podcasts de alta qualidade para você curtir agora mesmo. É o melhor app de podcast e funciona no Android, iPhone e web. Inscreva-se para sincronizar as assinaturas entre os dispositivos.

 

Guia rápido de referências